गुरुस्तवन
गुरू गायत्री
ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्।
द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वत्स्यादिलक्ष्यम्॥
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधिसाक्षीभूतम्।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णू गुरुर्देवो महेश्र्वरः।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
ब्रह्मानंदाय विद्महे। आत्मबोधाय धीमहि। तन्नो गुरु: प्रचोदयात्॥
गुरुस्तवन
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